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शायद जातियों के मकड़जाल में उलझ चुकी भारतीय राजनीति कभी उबर नहीं पायेगी। राजनीति में जातिगत कोर वोटबैंक की जरूरत कितनी अहम है, और इसमें सैंधमारी किसी दल के लिए कितनी घातक हो सकती है यह बात एक उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं।
उत्तरप्रदेश में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली इण्डियन नेशनल कांग्रेस का किला कैसे ध्वस्त हुआ? दरअसल कांग्रेस का किला तीन कोर वोटबैंक की बुनियाद पर टिका हुआ था। यह बुनियाद थी बीएमडी फॉर्मूला मतलब बी से ब्राह्मण, एम से मुस्लिम, और डी से दलित। धीरे-धीरे उत्तरप्रदेश की राजनीति का वक्त बदलता है और यहां बहुजन समाज पार्टी की ऐन्ट्री होती है। बसपा के पास अपना एक वोटबैंक था, दलित वोटबैंक। यही बसपा आगे चलकर मुस्लिमों और ब्राह्मणों को साथ लेने में कामयाब हो गयी। मतलब सीधे तौर पर कांग्रेस के बीएमडी फॉर्मूला पर प्रहार। इस प्रहार ने कांग्रेस की पूरी बुनियाद ढ़हा दी और उत्तरप्रदेश में लगातार कमजोर हो रही कांग्रेस की आखिरी सांसें भी खत्म हो गयीं।
जो सैंधमारी बसपा ने कांग्रेस के कोर वोटबैंक में किया उसी तरह की सैंधमारी आम आदमी पार्टी अब भारतीय जनता पार्टी के कोर वोटबैंक में कर रही है। भले ही चारों तरफ हिन्दुत्व के चर्चे हैं लेकिन जब आप पिछली लम्बी अवधि को फॉलो करेंगे तो भाजपा के कोर वोटबैंक के रूप में ठाकुर और बनिया नजर आयेंगे। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की जोड़ी इस वोटबैंक में धीरे-धीरे सैंधमारी कर रही है।
खैर यदि हम वर्तमान गुजरात चुनाव की बात करें तो आम आदमी पार्टी जितना नुकसान भाजपा को पहुंचा रही है उससे कहीं ज्यादा नुकसान कांग्रेस को पहुंचा रही है। शायद इसीलिए टेलिविजन पर दिखाये गये ओपिनियन पोल के मुताबिक गुजरात में फिर से भाजपा जीत रही है।
© वरुण चौधरी अंतरिक्ष Varun Chaudhary
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