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कहो तो दिन
कहो तो रात
यूं बैठे हम खिड़की पर
ताक लगा कर
आग जला कर
इस ठिठुरती ठंड में
ख्वाब सजा कर
दिन शाम रात दिन
ख्वाब बिना नींद
उड़े हम कहीं
कुद खिड़की के पार
पर नए लगे
बस हुए कुछ वार
बहकते हुए पीछे
तुम्हारी महक के
टाप आए
नदिया समंदर पहाड़
देखा शहर को
किसी अलग ऊंचाई से
देखा खुला आसमान में
चढ़ता चांद
चमक में चांद की
देखा तुम्हारी मुस्कान
दिन शाम रात दिन
देखता रहा बस तुम्हारी मुस्कान
की ऊंचाई पर था बहुत
गिरा धड़ाम
पर कटे सब छूटे
देखता रहा बस तुम्हारी मुस्कान
ये थी दुनिया
या कोई ख़्वाब
जागा नहीं
या जागना नहीं
थी जन्नत
है जन्नत
तुम्हारी मुस्कान ।।
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