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कुछ लफ्ज़ बड़े ही इत्मीनान से पिरोए है मैंने
इतने की हर पन्ने का नूर निकल आया है
यह लफ्ज़ ठीक मेरे ईश्वरीय प्रेम की तरह है
जो अनुभव से नहीं ,कल्पनाओं से बंधे है
जहां समर्पित हूं, बिना किसी प्रत्यक्ष प्रमाण के
अनुभव के बंधनों से मुक्त ,शायद कल्पना ही प्रेम का स्थाई स्वरूप है।
इतने की हर पन्ने का नूर निकल आया है
यह लफ्ज़ ठीक मेरे ईश्वरीय प्रेम की तरह है
जो अनुभव से नहीं ,कल्पनाओं से बंधे है
जहां समर्पित हूं, बिना किसी प्रत्यक्ष प्रमाण के
अनुभव के बंधनों से मुक्त ,शायद कल्पना ही प्रेम का स्थाई स्वरूप है।
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