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सितम ढहाती ये गर्मी, कहर बरसाती ये गर्मी,
अपने उच्च ताप से, सबको झुलसाती ये गर्मी ।
कहां गई वो गर्मियां, जिसमें बचपन खेला करता था,
गर्मियों की छुट्टियों का आनंद, उसी गर्मी में मिला करता था ।
बीत गया वो दौर, याद आती है सिर्फ यादें,
जब सुबह होते ही बच्चों का, काफिला निकला करता था ।
अब कहां वो गर्मियों की छुट्टियां, अब कहां वो गलियों में चहल पहल,
जब बच्चों का क्रिकेट टूर्नामेंट, गलियों में हुआ करता था ।
थक कर पसीनों से लतपत हम, जब घर आते थे, तो माँ डांटा करती थी,
अपने कोमल आंचल से, हमारे पसीनोंं को पोंछा करती थी ।
पापा से करूंगी शिकायत, ऐसा वो कहती थी,
लेकिन उनके सामने आते ही, वो कुछ भी ना कहती थी ।
इस बात का फिर से हम, फायदा उठाया करते थे,
थामे हाथ में बल्ला- बॉल, फिर से खेलने जाया करते थे ।
अब वो नालें कहां, जिसमें बॉल गिरा करती थी,
फिर से वही गंदी ब
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