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याद है वो सावन की पहली बारिश,
जिसे देख तुम खिल उठी थी,
उन बरसती बूंदों से महक उठी थी ।
उसी वक्त तुमने मुझसे पूछा था...
क्या तुम्हें बारिश पसंद है?
मैंने मंद मंद मुस्कुराते हुए,
तुम्हारी और देखते हुए,
तुमसे कहा था कि...
आज से पहले पसंद नहीं थी,
लेकिन जब तुम्हें बारिश में भीगते हुए,
खुशी से झूमते हुए, गुनगुनाते हुए देखा
तो ऐसा लगा कि सारी कायनात,
आज मुझ पर मेहरबान है,
इन बूंदों को तुम पर बरसाकर
बादल भी आज नादान है ।
सच कहूं ये सब देखकर मुझे,
बारिश से अब मोहब्बत हो गई,
तुम हो मेरी पहली मोहब्बत,
बारिश दूसरी हो गई ।।
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