
घर में मैं, मेरा भाई, मेरी मां और पिता रहते हैं। आर्थिक स्थिति गीली लकड़ी से निकली हुई आंच की तरह ही मद्धिम है। एक रोज मेरी मां की तबीयत खराब हुई और पिता ने मेरे और भाई के ऊपर झुंझलाहट में मां का ख्याल न रखने के लिए खूब सुनाया। घर की स्थिति देखकर मैं और मेरा भाई दोनों शांत रहें और मां अपनी खराब तबीयत का दोष भगवान को देकर ,उसे लगातार कोस रही थी।
तभी कुछ देर बाद पिता बाजार से वापस आए और मुझे एक हाथ में दवाइयों का पैकेट थमाया और दूसरे हाथ में सेब देते हुए कहा,"इसे अपनी मां को अभी खिला दो और जल्दी से खिचड़ी बनाकर अपनी मां को भी खिलाओ और सब को भी दो।" मेरा भाई पलक झपकते जाकर बर्तन धोने लगा और मैं चावल चुनने लगीं। तिनके निकालते हुए मैं यही सोच रही थी; कितना मुश्किल होता होगा एक पिता को मुश्किल घड़ी में भी पिता बने रहना।
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