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अपने ही घर में अब, किरायेदार जैसा हूं
घर के एक कोने में, हुआ गुमनाम बैठा हूं।
कभी उड़ती थी मेरे नाम की आंधियां इधर उधर
तेरे याद में अब भी मै,बेजान बैठा हूं ।
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