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लेखन की स्वतंत्रता

Surbhi ThakurSurbhi Thakur June 13, 2022
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तमाम विषयों को छोड़कर मेरा विचार कविता पर अटक जाता,  
लेखन में , विषय के नाम पर कविता शब्द ही भाता, 
कितनी कवितायें रच दी,  बस एक विषय को लेकर, 
बोरियत नहीं, रुचि पैदा करती ,  नया रूप देकर, 
हर कविता में पहलू  दिखते हैं भिन्न भिन्न, 
बयां करते हैं,  मैं  कितनी एक विषय पर लीन, 
कोशिश मेरी ,  कवि की गूँज पहुंचे दूर तक, 
समान बातों को नया रूप देने में हों वो परिपक्व, 
स्वतंत्रता हों उसको  लेखन का विषय चुनने की, 
विषय में पुनरावृति भी हों तो, बातें नए ढ़ंग से बुनने की, 
लेखन में परतंत्रता का  ना हों कभी ज़माना, 
अंतर्मन में छुपी प्रतिभा को  खुद ही तुमने पाना, 
जब मन भी तुम्हारा और प्रतिभा भी तुम्हारी, 
तो तुम्हारे लेखन में  रस्सी क्यूं खींचे दुनिया सारी, 
ना हों कोई शर्त,  ना हों पाबंदिया, 
लेखन में  तुम्हारी ही गूँज, तुम्हारी ही खामोशियां, 
पैमाना भी तुम्हारा, शब्द भी तुम्हारे, 
दूसरे के अंदाज़ से, तुम अपना अंदाज़ ना हारे, 
ऐसी स्वतंत्रता बिखरे हर महफ़िल में, 
पन्नो पर उतरे वही, जो हों कवि के दिल में 

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