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वो घर जहाँ तुम्हारी कितनी किलकारियां,
वो घर जहाँ राग भी तुम्हारा, तुम्हारी ही तालियाँ,
जहाँ के कोने-कोने पर हक़ तुम्हारा हैं,
मुख पर सूकूनियत की चमक जैसे ध्रुव तारा हैं,
जहाँ सुकून भरी सांस तुम ले पाते,
जहाँ देखा बसंत भी और पतझड़ जैसी रातें,
जहाँ का हर किस्सा तुम्हारा अपना हैं,
जहाँ तुम्हारी सादगी के लिए ना कुछ मना हैं,
जहाँ आकाश के हिस्से पर भी तुम्हारा पूरा हक़,
जहाँ से तारों की टिमटिमाती रोशनी देखते तुम दूर तलक़,
जहाँ नींद तुम्हें सबसे प्यारी आती,
जहाँ हवा भी तुम्हें अपना बताती,
जहाँ से दिखता तुम्हें धरती आकाश का नज़ारा,
जहाँ के पानी पर जताते हक़, चाहे हों वो खारा,
जहाँ की हर एक- एक चीज़ तुम्हारी अपनी है,
जहाँ बैठ कर खाया सादा भोजन भी दाल मखनी है,
जो तुम्हारे सफ़र का हों प्रारंभिक स्थान भी,
पर गंतव्य से वापिस लौटने पर हों तुम्हारी शाम भी,
जो छोटा हों या हों बहुत बड़ा,
पर तुम्हारा अपना हैं, कहलाने को वो खड़ा,
जो केवल ईंट पत्थर का नहीं , प्यार की भी उपज हैं,
घर के बड़े बुजुर्गों के साथ जहाँ पुष्पज हैं,
वो कोई और नहीं, तुम्हारा अपना घर हैं,
दुनिया का सबसे शांतिपूर्ण स्थल हैं
वो घर जहाँ राग भी तुम्हारा, तुम्हारी ही तालियाँ,
जहाँ के कोने-कोने पर हक़ तुम्हारा हैं,
मुख पर सूकूनियत की चमक जैसे ध्रुव तारा हैं,
जहाँ सुकून भरी सांस तुम ले पाते,
जहाँ देखा बसंत भी और पतझड़ जैसी रातें,
जहाँ का हर किस्सा तुम्हारा अपना हैं,
जहाँ तुम्हारी सादगी के लिए ना कुछ मना हैं,
जहाँ आकाश के हिस्से पर भी तुम्हारा पूरा हक़,
जहाँ से तारों की टिमटिमाती रोशनी देखते तुम दूर तलक़,
जहाँ नींद तुम्हें सबसे प्यारी आती,
जहाँ हवा भी तुम्हें अपना बताती,
जहाँ से दिखता तुम्हें धरती आकाश का नज़ारा,
जहाँ के पानी पर जताते हक़, चाहे हों वो खारा,
जहाँ की हर एक- एक चीज़ तुम्हारी अपनी है,
जहाँ बैठ कर खाया सादा भोजन भी दाल मखनी है,
जो तुम्हारे सफ़र का हों प्रारंभिक स्थान भी,
पर गंतव्य से वापिस लौटने पर हों तुम्हारी शाम भी,
जो छोटा हों या हों बहुत बड़ा,
पर तुम्हारा अपना हैं, कहलाने को वो खड़ा,
जो केवल ईंट पत्थर का नहीं , प्यार की भी उपज हैं,
घर के बड़े बुजुर्गों के साथ जहाँ पुष्पज हैं,
वो कोई और नहीं, तुम्हारा अपना घर हैं,
दुनिया का सबसे शांतिपूर्ण स्थल हैं
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