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कवी की जोरू
बहुत आसान रहा होगा हर उस कवी के लिए कुछ लिख पाना
जिसकी जोरू उसके लिए उपले जला,
आटा गूंद, गरम रोटी पकाती होगी I
भरे पेट में रामलखन के शरीर के कोड़े की पीड़ा महसूस होती होगी
भरे पेट में शनीला के खींचे हुए दुपट्टे की लाज भी आती होगी I
कवी के भरे पेट से दुनिया के दर्द का मरहम बनता ही होगा
की जोरू चूल्हे की आग के धुंए के आंसू पोंछती रोटी बनाती होगी I
कवी की भूख सिर्फ भूख है, रोटी की,
और रोटी की ज़िम्मेवार,
हर बार,
वो जोरू I
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