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ज़िन्दगी के सफर में यूं चलते रहे,

जिस्म ढलता रहा,ख्वाब पलते रहे।

जो भी पाया उसे अपना हक मान कर,

ना मिला जो, उसी को मचलते रहे।।


उम्र बढ़ती गई, शौक घटते गये,

मित्र भी एक एक करके कटते गए।

रास्ते तो जुदा सबके होने ही थे,

हाथ छूटे सहज, ख्वाब बंटते गए।।


जिनको हर मोड़ पर था सहारा दिया,

उनने भी धीरे धीरे किनारा किया।

सा

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