
क्षिक्षा भी व्यवसाय बन गई है पिछले कुछ सालों में।
डिग्री की है भूख अत्यधिक, इन सब पढ़ने वालों में।।
इंजीनियर, डाक्टर, आई ए एस से कम की सोच नहीं।
चाहे रुचि बिल्कुल ना हो, पर पढ़ने में संकोच नहीं।।
स्वजनों के सपनों की खातिर, क्षमता से ऊपर धाए।
लगे रहे दिन रात, किताबों से ही उबर नहीं पाए।।
रहे लक्ष्य से दूर अगर, तो नित चिन्ता खा जाती है।
मन ढोता अवसाद, हीनता की 'फीलिंग' छा जाती है।।
स्वाभिमान पर चोट लगे तो, कुछ भी समझ न आता है।
अंधकारमय, लक्ष्यहीन, उज्जवल भविष्य हो जाता है।।
ऐसी रहे व्यवस्था, रुचि के ही अनुरूप चले जीवन।
सुख,साधन,संतुष्टि मिले,हों सदा प्रफुल्लित तन और मन।।
करें नौकरी परदेशों में, धनलोलुप अवशेषों में।
यहां कमाएं जी भर के, फिर सैर करें परदेशों में।।
शिक्षा जुड़े स्वरोजगार से, साधन भी भरपूर रहें।
अपनो के संग बीते जीवन, अंदेशों से दूर रहें।।
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