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असफलता में छुपी सफलता, नामुमकिन में मुमकिन है।
अनहोनी में होनी शामिल, दुर्दिन में भी तो दिन है।।
गठबंधन बंधन से बनता, भाषा से ही परिभाषा।
आवागमन आगमन से है, और निराशा में आशा।।
दोष दोस्तों में है संभव, दुश्मन में भी एक मन है।
दुनियादारी में दुनियां है, अभिनन्दन में नन्दन है।।
करे वही विश्वासघात, होता जिस पर विश्वास सदा।
है असत्य भी त्याज्य जहां पर रहे सत्य की प्यास सदा।।
सदाचार या दुराचार में, परिणामी आचार रहा है।
इसी तरह सद्-दुर्व्यवहार में,मुख्य तत्व व्यवहार रहा है।।
शब्दों का, शब्दों के भीतर, रहा विरोधाभास सदा।
अनुभव मे भव का उद्बोधन,आस प्यास में यदा कदा।।
भाषाओं की यही खूबियां, भाषा को समृद्ध बनातीं।
सृजन नये शब्दों का करतीं,भाषा-ज्ञान,विवेक जगाती।।
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