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है अमावस की ये रात काली, मगर
ऐसे अन्धेरों से अब न घबराएंगे।
ढ़ूंढ़ लेंगे दिया, तेल, बाती, अगन,
फिर से साहस,यकीं,रोशनी पाएंगे।।
...
कोई दिखता नहीं, किसको आवाज दें,
जिसकी मौजूदगी ही सहारा बने।
कुछ तो अहसास हो,मन में, मस्तिष्क में,
चेतना सा जो रग रग में दौड़े, धुने।।
...
सब्र हो सारथी, बुद्धि आयुध सदृश,
रास्ते खुद-ब-खुद ही नजर आएंगे।
ढ़ूंढ़ लेंगे दिया, तेल, बाती, अगन,
फिर से साहस, यकीं, रोशनी पाएंगे।।
...
आज की नींव मजबूत होगी अगर,
तो इमारत भी कल की, बनेगी सुदृढ़।
बेअसर होंगे तूफान, आंधी, कहर,
ऐसा होगा अभेद्य, इरादों का गढ़।।
...
ना झुकेगा कहीं, ना ही टूटेगा अब,
हौसले को कवच ऐसा पहनाएंगे।
ढ़ूंढ़ लेंगे दिया, तेल, बाती, अगन,
फिर से साहस, यकीं, रोशनी पाएंगे।।
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