
आज व्यस्तता में हर गतिविधि, सीमित है परिवार की।
स्वजन, समाज, दोस्ती, रिश्ते, सीढ़ी हैं व्यवहार की।।
आतुरता, लापरवाही से जो फिसला, वो पिछड़ गया।
संभल संभल कर चलने से,मिलता अनुभव हर रोज नया।।
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पहल हमेशा करने में, डरता है हर इन्सान यहां।
मन में कुछ, जिव्हा पर कुछ, बेरुखी समेटे मान यहां।।
स्वागत की मुस्कान, क्षणिक आवेश महज है भावों का।
खुद को ही धोखे में रखता, है प्रतिबिंब इरादों का।।
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आज नफा-नुकसान, सुगमता, हर रिश्ते पर भारी है।
सच्घाई, निस्वार्थ, भरोसा, तो असाध्य बीमारी है।।
खुद पर ही विश्वास नहीं तो दूजे की फिर कौन कहे।
कहना चाहे, नहीं कह सके, मन मारे, चुपचाप रहे।।
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जो तुमसे परहेज करे, मत उसको फिर मजबूर करो।
दूरी अगर बनाए कोई, शीघ्र स्वयं से दूर करो।।
बोलचाल में भी मुंह फेरे, उससे बात नहीं करना।
जो अनदेखा करे, कभी भी, कोई आस नहीं करना।।
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जोर- जबरदस्ती के रिस्ते, चलते हैं दिन चार यहां।
अपना कहते, पर करते हैं, गैरों सा व्यवहार यहां।।
अपने किसी परिस्थिति में, अपनों से दूर नहीं होंते।
चूर भले हों तन से पर, मन से मजबूर नहीं होते।।
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