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आज व्यस्तता में हर गतिविधि, सीमित है परिवार की।
स्वजन, समाज, दोस्ती, रिश्ते, सीढ़ी हैं व्यवहार की।।
आतुरता, लापरवाही से जो फिसला, वो पिछड़ गया।
संभल संभल कर चलने से,मिलता अनुभव हर रोज नया।।
...
पहल हमेशा करने में, डरता है हर इन्सान यहां।
मन में कुछ, जिव्हा पर कुछ, बेरुखी समेटे मान यहां।।
स्वागत की मुस्कान, क्षणिक आवेश महज है भावों का।
खुद को ही धोखे में रखता, है प्रतिबिंब इरादों का।।
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आज नफा-नुकसान, सुगमता, हर रिश्ते पर भारी है।
सच्घाई, निस्वार्थ, भरोसा, तो असाध्य बीमारी है।।
खुद पर ही विश
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