
जाते जाते दो हजार बाइस, कुछ ऐसे घाव दे गया,
जिनको भरने में ना जाने,आगे कितने साल लगेंगे।
अन्तर्मन घायल अन्दर तक, दिल में दहक रहे अंगारे,
सूखे हुए आंसुओं के,अनसुलझे सभी सवाल लगेंगे।।
बीस और इक्कीस, महामारी के साए में बीते थे,
सभी घरों में बन्द,श्राप कुदरत का अतिशय झेल रहे थे।
स्वजनो से रह दूर, मौत की दहशत में कटता था हर पल,
सेवाकर्मी, धर्म निभाते हुए, जान पर खेल रहे थे।।
लाखों हुए हताहत,सहस्रों घर बर्बाद हुए,पर फिर भी,
जन मानस ने उम्मीद,हौसला और विश्वास नहीं छोड़ा था।
जिनसे बिछड़ गए थे अपने,सब ने दिल पर पत्थर रखकर,
स्वयंसुरक्षा और महामारी से ही, इसको जोड़ा था।।
छुआछूत सा फैल रहा था जब कोरोना गली गली में,
सबको था अहसास कि जो बच गया वही भाग्यशाली है।
धीरे धीरे वैक्सीन ने, असर दिखाना शुरू किया तो,
सबको ये विश्वास हो गया, बीमारी जाने वाली है।।
पता नहीं था दिल दिमाग पर ऐसा असर खराब रहेगा,
एक वर्ष उपरांत शांति का ये मौसम भी कहर करेगा।
अनजानी वजहो से फिर बिछड़ेंगे अपने एक एक कर,
डेंगू और पीलिया मिलकर, फिर जिस्मों में जहर भरेगा।।
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