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अन्तिम प्रहर,अन्त की आहट,मन को निर्विकार करती है।
बचपन, यौवन, वर्तमान का, मूल्यन बार - बार करती है।।
जो पाया, जो खोया अब तक, अन्तर उसमें नहीं बड़ा है।
मेरे लिए रहा क्या बाकी, यही प्रश्न प्रत्यक्ष खड़ा है।।
मेरे बाद जहां में मेरा, जब ना नामो-निशां रहेगा।
कौन याद रखेगा मुझ को,क्योंकर फिर अनुराग बहेगा।।
इस दुनियां में जीने तक ही, होती है पहचान हमारी।
अंतिम
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