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अन्तिम प्रहर,अन्त की आहट,मन को निर्विकार करती है।
बचपन, यौवन, वर्तमान का, मूल्यन बार - बार करती है।।
जो पाया, जो खोया अब तक, अन्तर उसमें नहीं बड़ा है।
मेरे लिए रहा क्या बाकी, यही प्रश्न प्रत्यक्ष खड़ा है।।
मेरे बाद जहां में मेरा, जब ना नामो-निशां रहेगा।
कौन याद रखेगा मुझ को,क्योंकर फिर अनुराग बहेगा।।
इस दुनियां में जीने तक ही, होती है पहचान हमारी।
अंतिम संस्कार के संग, हस्ती होती अनजान हमारी।।
जीवन में कुछ ऐसा हो, जिसका सुखकर अंजाम रहे।
रहते भी मन संतुष्ट रहे, ना रहने पर भी नाम रहे।।
मेरे बाद मेरी कविताएं, ही मेरी परछाईं होंगीं।
मेरा प्रतिनिधित्व करतीं वो, मेरी ही भरपाई होंगीं।।
इन कविताओं में ही मेरे, जीवन का दर्शन उकरेगा।
यादों की कलियां बिखरेंगी, वादों का दर्पण निखरेगा।।
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