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जिस पर करें भरोसा पूरा, वो ही जब धोखा दे जाए।
तो किस पर विश्वास करें हम।।
सच्चे-झूठे वादे करके, अपनी बातों से फिर जाए।
तो फिर किसका नाम धरें हम।।
चेहरे से तो रंग दिखता है,पता नहीं लगता है मन का।
पुतली के पीछे छिप जाता,है जो असली भाव जहन का।।
चेहरे पर मुस्कान समेटे, अन्तर में छल, कपट छिपाए।
तो फिर उससे क्यों न डरें हम।।
सच्चे-झूठे वादे करके, अपनी बातों से फिर जाए।
तो फिर किसका नाम धरें हम।।
कितनी कोशिश, इम्तहान के बाद भरोसा जमता है।
त्याग, समर्पण, प्यार, सत्य की बैसाखी से थमता है।।
बने बनाए हुए भरोसे, को निज हित की भेंट चढ़ाए।
तो क्यों सपनों में रंग भरें हम।।
सच्चे-झूठे वादे करके, अपनी बातों से फिर जाए।।
तो फिर किसका नाम धरें हम।।
जिस पर करें भरोसा पूरा, वो ही जब धोखा दे जाए।
तो किस पर विश्वास करें हम।।
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