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कितने रावण आज जलेंगे, मैदानों, चौपालों में।
किन्तु सुरक्षा सीता की, है फिर भी घिरी सवालों में।।
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हर वर्ष दशहरा आता है, देने को सीख जमाने को।
रावण सिर्फ जला करता है, दुनियां को भरमाने को।।
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हम भी यही मान बैठे हैं, फिर से वापस आएगा।
अगले साल,इसी दिन, फिर से मार,जलाया जाएगा।।
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वरना तो ये हर समाज में, गांव, शहर में जिन्दा है।
इनकी काली करतूतों से, मानवता
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