
एक अकेला ही काफी है, कृत-संकल्प उठाने को।
भूत,भविष्यत,वर्तमान को, स्वपनिल,सुदृढ़ बनाने को।।
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किसी सहारे की तलाश में, जो प्राणी थम जाते हैं,
बिना सहारे फिर जीवन में, वो आधार न पाते हैं।
अन्त:करण करे आवाहन, अन्त:शक्ति जगाने को
भूत,भविष्यत,वर्तमान को,स्वपनिल,सुदृढ़ बनानै को।।
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एक जन्म में कुछ ही अवसर एक आम जन पाता है,
उनसे भी गर चूक गया तो, स्वप्न धरा रह जाता है।
बहुत अहम कर्तव्यबोध, हर अवसर सफल बनाने को,
भूत,भविष्यत,वर्तमान को,स्वपनिल,सुदृढ़ बनाने को।।
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एक आत्मविश्वास, दूसरा मेहनत,लगन जरूरी है,
फिर हर राह सुगम करना, किस्मत की भी मजबूरी है।
बाधाएं खुद निर्देशन देंगीं, मंजिल तक पहुंचाने को,
भूत,भविष्यत,वर्तमान को,स्वफनिल,सुदृढ़ बनाने को।।
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एक अकेला ही काफी है, कृत-संकल्प उठाने को।
भूत,भविष्यत,वर्तमान को, स्वपनिल,सुदृढ़ बनाने को।।
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