
हर आत्मवंचित आत्मक्रंदन की मिले सीमा जहां।
हर आत्मकेंद्रित आत्महत्या की जड़ें होती वहां।।
इंसान का मस्तिष्क, निष्क्रिय हो विविध भ्रम पालता है।
कोई न कोई घाव, जीवन का हृदय को सालता है।।
मिलता नहीं सहयोग, स्वजनों से सहज, भरपूर सा।
दिखती न कोई राह, हर बंधन लगे मजबूर सा।।
बचता नहीं विकल्प जब कुछ, समस्या से पार का।
तो हार से अपनी व्यथित मन, सोचता उद्धार का।।
बुनता स्वयं ही जाल,अपने अन्त के आरम्भ का।
ओढ़े हुए नकाब कोरे मान, गौरव, दंभ का।।
ह़ोगा कठिन माया,ललक,संसार से मुख मोड़ना।
आसान है निज कर्म, जिम्मेदारियों को छोड़ना।।
है कायरों का कर्म ये, यूं जिन्दगी से भागना।
निष्फल नहीं होता कभी, निष्क्रिय समझ से जागना।।
आत्मघात हल नहीं व्यथा का, कैसा भी कोई संकट हो।
हल होता है हर सवाल का,भले समस्या जटिल,विकट हो।।
बन्धु-बान्धवों,स्वजनों से ही अगर बांट लें मन की उलझन।
मिलजुल कर हल निकल सकेगा,और सुरक्षित होगा तन मन।।
ऐसा कदम उठाने से पहले, मन में दस बार विचारें।
हार,निराशा से दूरी रख, सुविचारों से व्यक्तित्व निखारें।।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments