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सघर्षों के साए में जो पले, चले दुर्गम राहों पर,

मरुभूमि के वही कैक्टस,जीवन के नव छन्द बनेगे।

नंगी चट्टानो के बीच, दरारों से उभरे जो अंकुर,

नये जमाने की पीढ़ी के, उन्नति के अनुबन्ध बनेगे।।

...

त्याग, तपस्या और तथ्य का, मानक नहीं कहीं मिलता है।

बुद्धि, विवेक, ज्ञान के संगम, से ही विजय पुष्प खिलता है।।

लक्ष्यविहीन अश्व आशा के, बेलगाम, बदरंग बनेगे।

फिर कैसे वो नव पीढ़ी के, उन्नति के अनुबंध बनेगे।।

...

रात और दिन के अन्तर को, कभी विभाजित ना कर पाए।

जो मंजिल को हथियाने को,मन,क्रम,वचन,लगन से धाए।।

वही समय आ

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