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जब थी रिश्तों में निभाव की तंगी,
तब छोड़ना पड़ा पीहर I
आ गए थे हम रस्ते पर,
जैसे कि बिन वालिद और शौहर I I
अपना कहने को कोई था नहीं,
यूँ ही चलते चलते मिला एक राहगीर I
जिसने थामा अपनत्व का हाथ,
हमारी नज़रों में साबित हुआ दया का शूरवीर I I
बेपनाहों को अपनी कुटिया में पनाह देकर,
उसने दिखाए अपने असली रंग I
हमारी कमजोरी का फ़ायदा उठाकर,
छोड़ गया दुःख और कष्ट हमारे संग I I
इस धरती पर आकर हमने क्या पाया?
केवल बहाए अश्रु, रक्त और स्वेद I
जो कोई भी आता है हमें सांत्वना देने,
चला जाता है हमारे घावों को कुरेद I I
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