
एक बार निहार लो मुझे,
मशगुल हो जाऊँगा तुम्हारी अँखियों के झरोखों में I
अगर विश्वास न हो तो,
पूछ लो मेरी हुस्न-ए-मोहब्बत के किस्से जाकर मयखाने में I I
अपनी फ़िक्र तो छोड़ ही दी है मैंने,
क्योंकि मेरी ज़मीर में तुम्हारा वास है I
कहीं ऐसा न हो मेरे दिल का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाए,
दिलोदिमाग पर लगती सिर्फ यही खटास है I I
तुम्हारी मुस्कुराहट के बगैर यह जिस्म अधूरा है,
कराहता,सिसकता है यह सिर्फ तुम्हारे दीदार न हो पाने की वजह से I
मेरे शरीर के अंगों का तो मुझ पर है ही नहीं कोई इख्तियार,
रोता है यह सिर्फ एक इतवार की वजह से I I
पढाई लिखाई तो बस कुछ ही दिनों रहेगी,
लेकिन तुम्हारे लिए मेरा आकर्षण,मेरी मोहब्बत ताउम्र रहेगी I
पता नहीं कैसे इज़हार कर पाऊँगा इस बात का,
किया तो डर इस बात का रहेगा कि तुम्हारी और मेरी दोस्ती बरक़रार रहेगी या नहीं रहेगी I I
कभी कभी देखता हूँ मैं दर्पण में,
और निहारता हूँ अपनी सूरत I
भूत भगवान तो सब मन की सोच है,
हमेशा तुम ही आती हो मेरे सामने बनकर एक मूरत I I
जब इस छोटे से जहाँ (स्कूल )में होगा हमारे मिलन का आखिरी दिन,
तब कैसे करूँगा तुम्हें अलविदा?
सोचकर ही मैं बिलख उठता हूँ,
कल्पना के भँवर में कहीं मैं ही न हो जाऊँ गुमशुदा I I
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