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जब भी कानों में झुमके, गले में हार और पैरों में पाज़ेब पहनती हूं,
वो तुम्हारी कही कई बातें याद आती हैं;
कि मेरा सबसे कीमती ज़ेवर तो मेरे भीतर है, मेरी सादगी।
कि मेरे रूप की चमक, मेरा तेज़ और मेरी सरलता है ;
कि मेरे नज़रों की तरलता, शायद किसी सीप के मोती से भी ज़्यादा आकर्षित करती है।
तुम केहते थे ना मेरे सीरत की खूबी ही मेरी खूबसूरती है।
इसलिए मेरे दर्पण की मुझसे कुछ नाराज़गी सी थी,
वो मुझे तो देखना चाहता था पर मैंने उसे देखना ज़रूरी नहीं समझा।
पर अब वो पहली सी बात कहां,
अब तुम्हारा साथ कहां!
बस इन्ही ज़ेवरों से मन बहला लिया है,
बालों को ज़रा सहला लिया है;
कि कब किस मोड़ पे तुमसे मुलाकात होजाए,
और क्या पता फिर से वही बात होजाए।
–स्वप्निल
वो तुम्हारी कही कई बातें याद आती हैं;
कि मेरा सबसे कीमती ज़ेवर तो मेरे भीतर है, मेरी सादगी।
कि मेरे रूप की चमक, मेरा तेज़ और मेरी सरलता है ;
कि मेरे नज़रों की तरलता, शायद किसी सीप के मोती से भी ज़्यादा आकर्षित करती है।
तुम केहते थे ना मेरे सीरत की खूबी ही मेरी खूबसूरती है।
इसलिए मेरे दर्पण की मुझसे कुछ नाराज़गी सी थी,
वो मुझे तो देखना चाहता था पर मैंने उसे देखना ज़रूरी नहीं समझा।
पर अब वो पहली सी बात कहां,
अब तुम्हारा साथ कहां!
बस इन्ही ज़ेवरों से मन बहला लिया है,
बालों को ज़रा सहला लिया है;
कि कब किस मोड़ पे तुमसे मुलाकात होजाए,
और क्या पता फिर से वही बात होजाए।
–स्वप्निल
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