
Share0 Bookmarks 62 Reads0 Likes
मुहब्बत करता हूँ और वफ़ा-ए-जिगर रखता हूँ,
इबादत हो या इश्क़ दोनों का हुनर रखता हूँ,
बस तेरे दर-ओ-दीवार पर होता है मिरा सिर ,
तोड़ दे चाहे फिर से, दिल निकाल फिर रखता हूँ,
आ तुझे दिखाऊँ कहकशाँ जो है मेरे भीतर,
अदने से दिल में इश्क़ का समन्दर रखता हूँ,
तू कहता है 'अधीर' तिरे बारे कुछ जानता ही नहीं,
और मैं कम्बख्त सारी दुनिया की खबर रखता हूँ
आ बाँट लू ग़म तिरे जो तूने संजोये रखे है,
तेरे लिए मैं अपनी खुशियाँ उधार रखता हूँ
~ सूर्यांश 'अधीर'
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments