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मुहब्बत करता हूँ और वफ़ा-ए-जिगर रखता हूँ,
इबादत हो या इश्क़ दोनों का हुनर रखता हूँ,
बस तेरे दर-ओ-दीवार पर होता है मिरा सिर ,
तोड़ दे चाहे फिर से, दिल निकाल फिर रखता हूँ,
आ तुझे दिखाऊँ कहकशाँ जो है मेरे भीतर,
अदने से
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