कष्ट ऐसा देश पर क्यूँ है पड़ा ?
हे प्रभु ! अवतार लेकर आइए ।
भक्त रोते हैं , तड़पते मर रहे ,
आप उनको मृत्यु से बचाइये। ।
युद्ध से भी है भयानक दास्ताँ ,
मृत्यु पूरे देश में ही हो रहीं ।
रो रहे बच्चे पिता की मृत्यु पर ,
पत्नियाँ पति मृत्यु पर हैं रो रहीं ।।
खो गए मां के कहां पर लाल हैं ,
पत्नियों के भी सुहाग उजड़ रहे ।
भाई किसी का छोड़कर है जा रहा,
पापा किसी के मौत से हैं मर रहे।।
केवल नहीं इक क्षेत्र का यह युद्ध है,
बिछ रहीं है लाश पूरे देश में।
सांत्वना रहती अगर ये युद्ध होता,
मृत्यु ना होती कहीं भी शेष में ।।
कोई नन्हे पुत्र को ही छोड़ कर जा,
रही माता काल के गाल में ।
हां किए हैं पाप हमने किंतु प्रभु ,
हम को बचाओ हैं बुरे इस हाल में।।
हमने नहीं चीखें सुनी पशु पक्षियों की,
काटते हर बार उनको हम गए ।
किंतु अपने प्रिय की मृत्यु सुनी ,
दौड़ते से यह कदम तब थम गए ।।
है नहीं अधिकार हमको प्रभु क्षमा का,
चाव से हम लाश खाते ही रहे ।
मछलियों की , बकरियों की लाश को हम,
अपनी रसोई में पकाते ही रहे।।
बलहीन पशुओं को नहीं हमने सुना,
ना सुनी हमने उन्हीं की चीख क्यों ?
जान से हमने सभी को मार डाला ,
प्राण की कैसे मिले, अब भीख क्यों ?
स्वाद में खाते गए हम हड्डियां ,
बुद्ध को माना, मगर हिंसक बने ।
मानते गांधी तथा अशोक को ,
किंतु फिर भी हाय हम विध्वंसक बने ।।
मारना आसान पर मरना नहीं ,
बात यह तुम बुद्धि में ना लाए क्यों?
प्रकृति पहुंचा रही अब काल में ,
मौत देखी सामने, चिल्लाए क्यों ??
हे प्रभु ! हम जानते हैं नीच हम ,
दुष्ट व्यक्ति का यही उपचार है ।
हमने समन्वय तो कभी सीखा नहीं,
स्वाधीन चाहा समूचा संसार है।।
जानवर के रक्त से हम खुश हुए ,
मांस खाकर होंठ भी हम चाटते ।
मृत्यु फैलाई सभी ही ओर है ,
मृत्यु ही इस संसार में हम बांटते ।।
नीम बोया है अगर फिर आम की,
कल्पना भी हे प्रभु ! कैसे करें ?
जो कमी कर दी मनुज ने भूत में ,
उस कमी को है प्रभु कैसे भरें ??
दूसरे की लाश को खाया अरे !
बंधुओं की भी लाश को खाकर दिखाओ।
थी जंतुओं की मौत पर वैसी खुशी ,
वैसे स्वजन मृत्यु पर गा कर दिखाओ।।
हे प्रभु यह दंड भी काफी नहीं ,
इससे भयानक सजा के हकदार हम।
मृत्यु बाँटी है प्रभु हमने अगर ,
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