श्रेष्ठता
दो अंकुर फूटे उपवन में,
कोमल सा तन , सकुचाया मन
आदि में किंचित भेद न था
पर वाम प्रवृत्ति था यौवन
एक दिन दोनों में पुष्प खिले
एक था गुलाब ,दूजा कपास
दोनों में किन्तु अबोला था
थे यद्यपि दोनों इतने पास
एक दिन हिम्मत कर बोला कपास
बंधू गुलाब तुम कैसे हो ?
भृकुटि ताने घुमा गुलाब
झटका बिजली का जैसे हो
बोला गुलाब ,
तुम नीच कुल साहस देखो
मुझको बंधू कह जाते हो
दर्पण में देखो मुख अपना
भाई क्यों मुझे बनाते हो
बोला कपास ,
हम एक मृदा में उपजे हैं
एक सा आहार दिया जाता है
क्या नहीं उचित यह कारण है
अपना बन्ध्त्व का नाता है ?
अट्टहास कर हंस पड़ा गुलाब
जैसे की फटा हो बम गोला
फिर तीखे कर तेवर अपने
वह पुष्प कपास से यूँ बोला
कल प्रातः काल में माली के
हाथों से तोडा जाऊंगा
फिर भ्रमण करूँगा मैं विदेश
या देव शीश चढ़ जाऊंगा
या किसी वीर बलिदानी के
मस्तक की शोभा बढ़ाऊंगा
या बन आभूषण नारी का
जग को सारे ललचाऊँगा
तुम गंध हीन हो भद्दे से
कोई पास नहीं जो आता है
में हूँ जो सुगन्धित रक्त वर्ण
भौंरा भी मुझे रिंझाता है
तुम निर उपयोगी व्यर्थ रहे
धरती को मुफ्त चूसते हो
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments