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मेरे अराजक अधिकार की सीमा जब तुमसे टकरायेगी,
क्या तुम चुप बैठोगी या फिर हार मान जाओगी?
जब मैं कहूंगा इश्क़ की चाल से समझौता कर लो,
तुम क्या दिल लगाओगी या दिल को तुम समझाओगी?
मेरे होने की सनक जब तुमको रोज़ रुलायेगी,
मेरे पास रहने की धधक जब तुमको पास बुलाएगी,
क्या तुम मुझसे दूर बिफर फिर दूर कहीं चली जाओगी?
या मेरे शीश के मस्तक पर अपना आँचल लहराओगी!
मैं जब सब उनमुन लोगों से हार के वापस आयूँगा,
क्या तुम शीश झुकाओगी या फिर गले लगाओगी,
मैं बिखरा जब टूट के नीचे आंसू सा गिर जाऊँगा!
क्या तुम अपने गोद में मुझको नींद तक ले जाओगी?
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