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सर्द हवाएं चुभ रहीं शूलों सी,
धमनियां लगी जमने बर्फ़ों सी।
वो तो फ़ितरत मेरी रूमानी है,
और अदा ज़रा मस्तानी है।
सो गर्म गर्म चाय की चुस्की में,
रज़ाई और अंगीठी की गर्मी में,
दे दी इजाज़त मौसम तुझको,
मैंने अपने जज़्बात बहलाने को।।
गर समझे तू इसको मेरी मज़बूरी
और करने लगे मुझसे सीना जोरी।
तू मौसम है, फिर औकात में रह,
न हो आतुर मुझे आज़माने को।
मेरे जज़्बों में अब भी आग बहुत है,
तेरी अकड़ी बर्फ़ पिघलाने को।।
Sujeet Dwivedi "मार्शल"
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