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सर्द हवाएं चुभ रहीं शूलों सी,
धमनियां लगी जमने बर्फ़ों सी।
वो तो फ़ितरत मेरी रूमानी है,
और अदा ज़रा मस्तानी है।
सो गर्म गर्म चाय की चुस्की में,
रज़ाई और अंगीठी की गर्मी में,
दे दी इजाज़त मौसम तुझको,
मैंने अपने जज़्बात बहल
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