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गुजर जाती मैं भी उन गलियों से।
पर वह गलियां बदनाम पड़ी थी।
चाहने वाले बहुत थे।
पर मुझे उनकी चाहत में दिखती कमी थी।
रूहे खुश हो पाती नहीं थी।
मैं 5 मिनट में बोर हो जाती थी।
जिंदगी के किस्सों में मशहूर मैं।
उनकी मोहब्बत खुद के लिए देख के।
कभी-कभी अपने सांवरे रंग पर।
मैं इतरा जाती थी।
मैं अपनी मुस्कुराहट को चुपके से दोहरा जाती थी।
गुजर जाती मैं भी उन गलियों से।
पर वह गलियां बदनाम पड़ी थी।
चाहने वाले बहुत थे।
पर मुझे उनकी चाहत में दिखती कमी थी।
रुहे खुश हो पाई नहीं।
जिस्म का मेरे व सावला रंग।
सब को भा जाता है।
मेरी खामोशियों में भी उन्हें इश्क नजर आता है।
यह किस्सा अक्सर कॉलेज की गलियों में दोहराया जाता है।
वह मोहब्बत उनकी । अफसोस।
हमारी रूह को न छुपाता है।
उनका इश्क उनही तक सीमित रह जाता है।
क्या बताऊं।
वह इस दिल को भेद नहीं पाता है।
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