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रात की चांदनी कट गई थी।
भोर से लड़कर सुबह उस दिन निकल गई थी।
चांद से लड़कर।
सूरज बिखेर रहा था।
अपने प्रकाश की खूबसूरत लालिमा।
दरवाजों से छनकर आ रही थी किरणों की वह खूबसूरत धारा।
मैं सो रही थी बिस्तर पर।
जब उठी तो इस एहसासों का किरण।
छू रहा था मेरे तन मन और आगन।
मन में एक सुंदर भवन।
भवन के आसपास खील रहा था उपवन।
रात की चांदनी कट गई थी।
भोर से लड़कर सुबह की वह रागिनी निकल गई
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