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कहने को हजार दरवाजे दिखाई देते हैं चुनाब करने को, मगर रास्ता सिर्फ एक दरवाजे के पीछे होता है। और हर बार हम सही दरवाजा चुनते हैं, क्योंकि दुनियाँ उसी तरफ जानी है। बांकी दरवाजे तो छलावा हैं बस ये कहने को कि "काश! दूसरा दरवाजा चुना होता"। भला कोई कैसे चल सकता है बिना रास्ते वाले दरवाजों के पार।
आज हम यहाँ हैं, सही दरवाजे चुनते चुनते कितनी दूर आ गए हैं, और अब मुझे पछतावा नहीं ये रास्ता चुनने का, क्योंकि मुझे मालूम है कि यही एक मात्र रास्ता था जो मुमकिन था और सबसे बेहतर था।
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