
कहानी अनकही सी
सिद्धार्थ एक गांव में रहने वाला बच्चा सी।धा साधा सा पढ़ाई में अव्वल तो शरारतों में भी
अब धीरे धीरे समय के साथ सिद्धार्थ बड़ा हो रहा था । सिद्धार्थ 10 वीं कक्षा में पहुंच गया और लगन के साथ पढ़ाई करने लगा लेकिन उसकी शरारतें भी बदस्तूर जारी थी । गांव के विद्यालय से 10 वीं में गांव में सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किये तो पिताजी जोकि सरकारी अध्यापक थे खुश हुए और उन्होंने सिद्धार्थ को शहर भेजने का फैसला किया।
गांव का शरारती लड़का अब शहर के स्कूल में गुमसुम से रहने लगा न किसी से कुछ कहता ना किसी को कुछ बताता
फिर उसकी प्रत्युष के साथ मुलाकात हुई ।
प्रत्यूष भी सिद्धार्थ की तरह ही चंचल मन वाला था लेकिन पढ़ाई में उतना होशियार नहीं था धीरे धीरे दोनो की दोस्ती गहरी होने लगी । दोनो एक साथ स्कूल जाते और आते लेकिन स्कूल में एक साथ नहीं रहते क्योंकि सिद्धार्थ साइंस का स्टूडेंट था तो प्रत्युष आर्ट्स का। आब सिद्धार्थ को घर चाहिए था रहने के लिए क्योंकि कुछ दिन तक तो वो अपनी दूर की बुआ जी के घर रह लिया लेकिन आब पूरे साल उसे रहना था तो उसने कहीं पर पेइंग गेस्ट के रूप में रहने का फैसला किया ।
ये बात उसने आपने दोस्त प्रत्युष को बताई तो उसने कहा मेरे घर पर एक कमरा खाली है आज शाम को पापा से बात करता हूँ। दूसरे दिन उसने प्रत्युष से पूछा तो उसने कहा पापा ने रहने के लिए हां कर दी है । ये सुनकर सिद्धार्थ बहुत खुश हुआ ।
और वह प्रत्युष के साथ उसके घर के पास की दुकान पर चाय पीने गए ।
और दूसरे दिन सिद्धार्थ प्रत्युष के घर रहने चला गया। प्रत्युष की माताजी भी उसका बेटे की तरह ही ख्याल रखती थी । स्कूल के बाद दोनो हर शाम को उस चाय की दुकान पर जाते और एक दूसरे को सारे दिन का हाल सुनाते। ये तो मानो उनकी रोज की आदत सी बन गयी थी।
खोया खोया सा रहने वाला सिद्धार्थ आब थोड़ा खुलने लगा
एक दिन शाम को चाय पीने के बाद जब दोनों घर जा रहे थे तो सिद्धार्थ की नजर एक लड़की पर पड़ी जो साइकिल पर जा रही थी । वो केवल उसकी थोड़ी सी झलक देख पाया। उसने प्रत्युष को कहा तू घर जा मुझे कुछ काम है। मैं आता हूँ । ये कहकर वो उसके पीछे चल पड़ा लेकिन वो उसे देख नहीं पाया । कुछ देर तक उस दिशा में जाने के बाद वो वापस घर की और चल पड़ा । घर आने पर जब प्रत्युष ने उससे पूछा तो उसने कुछ नहीं बताया । लेकिन उस सुंदर बाला को न देख पाने का मलाल अभी भी उसके मन में था । वो जब तब उसी लड़की के ख़यालों में खोया रहता।
उसका बस एक ही अरमान था की वो उस लड़की को एक बार फिर से देख पाए।
इन्हीं ख़यालों में खोया हुआ सिद्धार्थ सुबह स्कूल गया। स्कूल में भी उसका मन नही लगा। वो खोया सा बैठा था तो उसे टीचर ने खड़ा करने के लिए आवाज लगाई तो वो अपनी ख़यालों से बाहर निकला । टीचर ने उसे क्लास से बाहर कर दिया। वो उदास सा होकर क्लास से बाहर आकर लाइब्रेरी की तरफ चल पड़ा । वहां जाकर उसने देखा कि एक लड़की पढ़ रही थी । उसने उसे नज़र भर देखा।
वह बस अपनी पढ़ाई में मशगूल थी । सिद्धार्थ उसे देख कर फिर खो गया । काफी देर बाद उसे प्रत्युष ने झकजोरा तो उसने पाया कि वो तो सो गया था । जगते ही उसकी नजरें उसी लड़की को टटोलने लगी। प्रत्युष ने उसे कहा की स्कूल खत्म हो गया तो वो क्लास की तरफ गया और उसने अपना बैग उठाया और चल पड़ा । रास्ते में प्रत्युष ने एक दो बार और पूछने की कोशिश की । तो वो मुस्कुराता हुआ बोला कुछ नहीं और निकल पड़ा । घर आने के बाद उसने कपड़े बदले। तब तक प्रत्युष भी आ गया । तो उसने कहा कि चल चाय पीकर आते हैं और वो दोनों निकल पड़े । चाय की चुस्कियां लेते लेते उसने प्रत्यूष को उसने सारी घटना बताई । तो उसने बताया की उसका नाम गरिमा है और हमारे घर के पास ही रहती है और 12 वीं कक्षा में पढ़ती है।आज सिद्धार्थ बहुत खुश था उसे गरिमा के बारे में जो पता चल गया। दूसरे दिन सिद्धार्थ स्कूल के लिये घर से जल्दी निकला तो आंटी जी(प्रत्युष की मम्मी) ने पूछा इतनी जल्दी कहाँ चल दिये सिद्धार्थ प्रत्युष तो अभी नहा रहा है। नहीं मुझे कुछ किताबें खरीदनी है स्कूल के लिए आंटी सिद्धार्थ ने जवाब दिया। और निकल पड़ा घर से निकलते ही सिद्धार्थ गरिमा के घर के पास चला गया जो की पास ही में था। कुछ देर बाद गरिमा वहां से निकली तो सिद्धार्थ ने उसे देखा ।गरिमा ने भी उसे देखा लेकिन गौर नहीं किया । तभी वो भी चल पड़ा स्कूल की तरफ।
उसे गरिमा के पीछे - पीछे जाते अजय ने उसे देख लिया । अजय गरिमा का आशिक था और गली का गुंडा भी। लेकिन सिद्धार्थ तो अपने ही ख़यालों में खोया था। शाम को सिद्धार्थ प्रत्युष को बिना बताए स्कूल से निकल गया क्योंकी उसकी गहरी इच्छा थी कि वो गरिमा को देखे। तभी रास्ते में अजय अपने कुछ लफंगों के साथ आया । उसने सिद्धार्थ को कहा दूर रह तू गरिमा से। तो सिद्धार्थ को भी गुस्सा आ गया।
सिद्धार्थ ने उससे कहा नहीं रहूंगा उससे दूर तो अजय ने उसे मारना शुरू कर दिया इस अचानक हुए हमले से सिद्धार्थ संभल नहीं पाया । तभी अचानक प्रत्युष वहां आया और उसने अजय की पीठ पर जोर से मारा और उन सब को वहां से भगाया । और सिद्धार्थ को संभाला तो सिद्धार्थ ने कहा भाई आज तूं नहीं होता तो पता नही.....बोलते बोलते सिद्धार्थ की आंख भर आईं
प्रत्यूष ने आँसू पोंछे और कहा चल चाय पीने चलते हैं।
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