Share0 Bookmarks 48733 Reads0 Likes
जरा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है,
जो दरिया को कहूँ अपना, समंदर रुठ जाता है,
गजब की कशमकश से गुजर रहा हूँ आजकल साहेब,
की बचालूं चंद सिक्के जो ये गुल्लक फुट जाता है!
अकेला बैठ कर जब भी मैं अपना जोड़ता हूँ दिल,
नजाने क्यों ये पहले से भी ज्यादा टूट जाता है,
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments