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जरा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है,
जो दरिया को कहूँ अपना, समंदर रुठ जाता है,
गजब की कशमकश से गुजर रहा हूँ आजकल साहेब,
की बचालूं चंद सिक्के जो ये गुल्लक फुट जाता है!
अकेला बैठ कर जब भी मैं अपना जोड़ता हूँ दिल,
नजाने क्यों ये पहले से भी ज्यादा टूट जाता है,
हमने आजमाई है जहां में जब भी सच्चाई,
हूँ निकला हार कर, जीता हुआ कोई झूठ जाता है!
वफ़ा की बात कर के क्या ही मिलना है मोहोब्बत में,
यहाँ है जो वफ़ा करता अकेला छूट जाता है,
ये दिन कैसे गुजरता है, ये रातें कैसे कटती है?
वो जब भी रूबरू होता है ख्वाब मेरा टूट जाता है!
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