मंजूर-ए-इश्क़'s image
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दास्तां तुझ पर खत्म तुझ से सुरू

फिर भी वफा पे न ग़ुरूर करूँ,

मुझे मंजूर है।


मंजिल तक आकर लौट गया तू,

फिर भी ताउम्र इंतज़ार करूँ,

मुझे मंजूर है।


सजा-ए-अंधेरा तू ने बनाया जिंदगी,

फ़िर भी जुगुनू सा जगजगाउँ,

मुझे मंजूर है।


ग़मों का कारवां सौगात ले आया,

फ़िर भी मुस्कुराऊँ मृदु,

मुझे मंजूर है।


वस्ल वादा कर कभी न निभाया,

फ़िर भी एहसाह न हो बेकाबू,

मुझे मंजूर है।


जिंदगी की पन्नो से खुशियां चुराया,

फिर भी न हो तड़प,न रोऊँ,

मुझे मंजूर है।

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