
दास्तां तुझ पर खत्म तुझ से सुरू
फिर भी वफा पे न ग़ुरूर करूँ,
मुझे मंजूर है।
मंजिल तक आकर लौट गया तू,
फिर भी ताउम्र इंतज़ार करूँ,
मुझे मंजूर है।
सजा-ए-अंधेरा तू ने बनाया जिंदगी,
फ़िर भी जुगुनू सा जगजगाउँ,
मुझे मंजूर है।
ग़मों का कारवां सौगात ले आया,
फ़िर भी मुस्कुराऊँ मृदु,
मुझे मंजूर है।
वस्ल वादा कर कभी न निभाया,
फ़िर भी एहसाह न हो बेकाबू,
मुझे मंजूर है।
जिंदगी की पन्नो से खुशियां चुराया,
फिर भी न हो तड़प,न रोऊँ,
मुझे मंजूर है।
मेरे शब्दों से किताब तू ने सजाया,
फ़िर भी मैं ही न पढूँ,
मुझे मंजूर है।
सपनें मेरे दूजे आँगन बोया,
फिर भी हो सच दुआं करूँ,
मुझे मंजूर है।
जो करवाना चाहे तू वो मैं करूँ,
फिर भी न दर्द जताऊं,
मुझे मंजूर है।
तू भी लिख ले तुझे क्या मंजूर है...
जो मंजूर-ए-इश्क़ मुझे मंजूर..... क्या तुझे मंजूर है??
क्या मंजूर है "आम्री" सा पागलपन.....
या टूट कर मोहबत फरमाना मंजूर है??
बोल तुझे क्या मंजूर है!!!!
सोनम राउत(आम्री)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments