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धरती फटी न जलजला आया
न खुदा आया न भगवान आया
फिर तेरह साल की बच्ची को
हवस न अपना शिकार बनाया
निर्दयता क़ा ताण्डव न रुका
जब तिलकधारी रखवाले ने
बैठ के कानून की चौकी पर
कानून को ही शिकार बनाया
जाने कबतक देश की वेदी पर
ऐसे ही निर्भया की बलि चढ़ेगी
क्यो नही बोले अब बहुत हुआ
अब और कानून नही बनेगा
जब जब यहां अत्याचार हुआ
सत्ता न कानून कोई बचा सका
कहां जोर लगाते रह गए सारे
कानून पर कानून बनाते गए
क्यों दो आँसू नही बहा पाए
कोई तो कहता इस खुदा से
क्यों भेज देता है बेटियां यहां
जहां नरक पांव पसारता रहा
माफ करे कन्या, बहु, बेटियां
धरती का स्वर्ग नही देश मेरा
यत्र नार्यस्तु कोई न बोले यहां
सक्षम नही कोई मुर्दे रहते यहां
कानून का नंगा खेल हो गया
अविरत नीर बहता रह गया
नदी सूख पाई न आंख सुखी
मानवता ने ही दम तोड़ दिया
मुर्दो के इस शहर में अब भी
कहाँ ढूंढ रही तू जिंदगी यहां
काश माँ ही उपकार कर देती
कोख में मारके बेटी बचा देती
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