Share0 Bookmarks 0 Reads0 Likes
काज़ी प्रीत खुदा से की होती
हर पल महक जहान में होती।
प्रीत की महक कब छुप पायी
वह तो मैंने रोम रोम में बसाईं।
प्रीत इबादत है उस खुदा की
जब जब छुपायी बाहर आई।
शोख अदाओं में झलक आई
यह खामोशियों में नजर आई।
दिल की गहराइयों में पनपती
<No posts
No posts
No posts
No posts
Comments