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अज्ञानवश जीव बार बार जन्म लेता मर जाता है।
जन्ममरण बंधन से छूटना साकेत कहा जाता है।
मोक्ष परम अभीष्ट परम पुरूषार्थ कहा जाता है
आत्मतत्व साक्षातकार साकेतधाम कहा जाता है
उपनिषदों में आनन्द की स्थिति मोक्ष कहलाता है
द्वंद्वों के विलय का आनंद श्रीसाकेत कहा जाता है
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