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देखते उस मुकाम को पीछे छोड़ आये
कभी बना आशियाना बंजर छोड़ आये।
ताली थाली बजाई वहां झाँकने न गए
पूछ लेते अपने आपसे क्यों बजा आए।
चीन वही हम भी वही दीवाली थी वही
पटाखे लडे सबका बहिष्कार कर आए।
कमी तो न रह गई कोई इस तपस्या में
देख लेते क्यों उनका व्यापार बढा आए।
मार्च आते ही अपना नव वर्ष याद किया
दिसंबर में बहिष्कार को पीछे भूल आए।
एक जनवरी फिर नव वर्ष मनाने में लगे
कोई इवेंट तो नही एक बार झांक आए।
झांसे में संकल्प लो देखना टिक पाओगे
जीवन मे गंभीर होना पड़ाव कई आएंगे।
तूफान तो धरती पर और भी आते रहेंगे
और पतझड़ के पत्तो सा उड़ा ले जाएंगे।
अटक भी जाना बहाव में उड़ने से पहले
देखना संकल्प धरातल पर टिक पाएंगे।
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