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अमृत महोत्सव का अप्रतिम क्षण है
भौर से झांक रहा रागअमृतकाल है
अरुणिम आभा पंछियों का कलरव
क्षितिज में आफताब का इंतज़ार है
दिलो में उमंग बसे उत्सव अनुराग है
उदित होने लगा है यह अमृतकाल है
काली घटाओ में मद्धिम नजर आता
दूर पंजाब की धरा के क्षितिज पर है
फिर खालिस्तानी खौफ सिर उठाता
उदित होने लगा है वहां अमृतपाल है
लबो पर खामोशी ओढ़ आप बैठे है
फिर कोई नया भिंडरवाला बनाना है
डर जाते है भूत की उस परछाई से
जहां बेकसूरों का रक्त बहता रहा है
धर्म बना शांतिप्रिय जीवन के लिए
कौन उसको हथियार बनाता रहा है
क्यों समाज उसकी भेंट चढ़ रहा है
कौन धार्मिक भावना भड़का रहा है
कौन झौंकता कौमवाद की आग में
राजनीतिक आकांक्षा की दास्तान है
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