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अमृत महोत्सव का अप्रतिम क्षण है
भौर से झांक रहा रागअमृतकाल है
अरुणिम आभा पंछियों का कलरव
क्षितिज में आफताब का इंतज़ार है
दिलो में उमंग बसे उत्सव अनुराग है
उदित होने लगा है यह अमृतकाल है
काली घटाओ में मद्धिम नजर आता
दूर पंजाब की धरा के क्षितिज पर है
फिर खालिस्तानी खौफ सिर उठाता
उदित होने लगा है वहां अमृतपाल है
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