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लेखनी की लेखक से बगावत हुई
दृश्य जगत में उनके चर्चे आम हुए
तकाजा था वक्त को पहचाना नही
हवा बह रही वह विपरीत बह गए
बोलते वे चेहरे पर खौफ क्यों नही
डरे क्यों नही बार बार सवाल हुए
बगले झांके असर उल्टा ही हुआ
डरानेवाला रहा बगले झाँकते हुए
राह जो बनाई आवाज उठने लगी
डर की दिल में जगह बची ही नही
#सुरेश_गुप्ता
स्वरचित
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