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मेरी यह विनती है सब कर दे दिल से माफ
मैं जाऊंगा वन में ले राम मिलन की आस
मांगुगा माफी गुनाहो कि उन कदमो में बैठ
मिले संबल लौटा पाऊं वे ही बने महाराज
साधु साधु बोले सब कितने नेक है विचार
गुरु माताएं सभासद अयोध्यावासी तैयार
सबने एक स्वर बोला हम भी चलेंगे साथ
करेंगे विनती राम से लौट आएं राजा राम
अगले दिन कूच करे सब चले लिवाने राम
चित्रकूट के वन में धूल का उठ रहा गुबार
लक्ष्मण बोले भैया आंधी इस ओर बढ़ रही
ऊपर चढ़ देखते राज पताका फहरा रही
बोले भाई लगता है भरत की सैना आ रही
कहीं मन मे बदनीयती का तो नही विचार
बोले राम भरत सा भाई होना दुर्लभ जान
सुन लो लक्ष्मण भरत जैसा भाई है महान
संध्या वक्त आए भ्राता चरण शीश नवाते
लक्ष्मण बोले भाई भरत मिलन को आये
भरत को उठा उर लाये राम को हुआ चेत
भरत बिलखते बता रहे नही उनका दोष
माता की कुबुद्धि का खेल टूटा हमारा मेल
भाई मिल बैठे देर रात तक हुआ मन मेल
चित्रकूट में आज ग्रामवासी राजसभा जुड़ी
गुरुवर बताते रहे अयोध्या में जो घटना हुई
रख भरत का पक्ष सब राम से विनती करे
राम अयोध्या लौट चले भरत ये विनती करे
राम विनीत भाव से सभा संबोधित कर रहे
पितृ वचन इस जग में सदा से शिरोधार्य रहे
धर्म शास्त्र बखान करते धर्म पर अडिग रहे
करुं निवेदन भरत से पितृवचन पालन करे
निःशब्द सभा शांत थी वचन सब मान रहे
भरत बोले यह अटल सत्य है राजा राम रहे
चौदह वर्ष खड़ाऊ ही अयोध्या गद्दी पर रहे
निवेदन कर रहा राजाराम खड़ाऊ दान करे
स्वरचित
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