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मदहोश निशा की अद्भुत चांदनी में
निधिवन में अवतरित हो रास रमाते
श्याम मुरली पर जब धुन छेड जाते
कण कण में कृष्ण जीवंत हो जाते
स्वामी हरिदास वृन्दावनधाम पधारे
ध्यान में सदा जुगल किशोर बिराजे
वृन्दावन की गलियो में स्वामी गाते
कण कण में कृष्ण जीवंत हो जाते
यमुना करीब के रमणीक कुंज में
नित्यलीला प्रेम रसास्वादन करते
समाधि में सदा विग्रह दर्शन पाते
कणकण में कृष्ण जीवंत हो जाते
श्यामा-कुंजविहारी की सहज जोडी
अपार रस सिंधु ह्रदय मे रमाये रहते
कभी रसावेश मे मधुर वाणी से गाते
कण कण में कृष्ण जीवंत हो जाते
दिनभर बंदर पँछी उछलकूद मचाते
शाम ढले लौटते रात नही रुक पाते
राधा-कृष्ण गोपियों संग रास रचाते
कण कण में कृष्ण जीवंत हो जाते
बृक्ष मानों हाथ पकड़के नृत्य करते
निधिवन में पेड़ गोपीश्याम हो जाते
अद्भुत आनंद की अनुभूति दे जाते
कण कण में कृष्ण जीवंत हो जाते
जो परमेश्वर श्रीकृष्ण के दर्शन पाते
भगवत अपार ऊर्जा सह नहीं पाते
जो देखे पागल होते प्राण हर जाते
कण कण में कृष्ण जीवंत हो जाते
निधिवन के रंगमहल में शयन करते
सवेरे रंग महल का दरवाजा खुलते
भक्त श्रृंगार चढ़ाते प्रसाद में ये पाते
कण कण में कृष्ण जीवंत हो जाते
निधिवन महिमा सदा अक्षुण्ण रहे
श्रद्धा से राधा-कृष्ण के दर्शन पाते
भगवान ये मनोकामना पूर्ण करते
कण कण में कृष्ण जीवंत हो जाते
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