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सत्ता संघर्ष में टकराव कलम से होते रहे
आर्थिकवाद के युग मे कई घुटने टेक गए
मुशी किसी जमाने मे कलम के धनी हुए
जमाने में कई कलम के धनी आज हुए
कलम की आवाज़ सत्ता की दास न रही
जमाने में पर पत्रकारिता सदा अमर रही
आज फिर पत्रकारिता पर हाथ डाल रहा
धनिक कोई कलम खरीदने निकल पड़ा
क्या सोचा था वह कलम खरीद पाएगा
क्या सोचा आवाज़ अपनी बना जाएगा
क्या सोचा पैसे से आवाज़ दबा जाएगा
क्या मंसूबो को वह पैसों से तोल पाएगा
ईंट पत्थर मिट्टी के घरोंदे महल नही होते
सोच लेता महल सदा रहने वालो से होते
महल पाने में अमीर सफल तो हो गया
कलम नदारद मिली जिसे पाने निकला
सत्य है पैसों में ताकत जरूर होती होगी
बाजार में और बहुत कुछ बिकता होगा
पर असली ताकत की खबर तब होती
खबर देने वाले की कीमत आंकी होती
खुशनुमा घर खरीदने की ललक होती है
मगर वे बेबस है खुशहाली खरीद पाने में
पैसेवाले इस बाजार में घुटने टेक जाते है
जो नही बिकता उसकी कीमत लगाने में
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