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सत्ता संघर्ष में टकराव कलम से होते रहे
आर्थिकवाद के युग मे कई घुटने टेक गए
मुशी किसी जमाने मे कलम के धनी हुए
जमाने में कई कलम के धनी आज हुए
कलम की आवाज़ सत्ता की दास न रही
जमाने में पर पत्रकारिता सदा अमर रही
आज फिर पत्रकारिता पर हाथ डाल रहा
धनिक कोई कलम खरीदने निकल पड़ा
क्या सोचा था वह कलम खरीद पाएगा
क्या सोचा आवाज़ अपनी बना जाएगा
क्या सोचा पैसे से आवाज़ दबा जाएगा
क्या मंसूबो को वह पैसों से तोल पाएगा
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