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जीवन की दूसरी पारी

suresh kumar guptasuresh kumar gupta April 21, 2023
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वक्त हुआ गुमनाम पत्ते खोलने का
जहां कभी अतीत दफन हुआ था
गृहस्थ की गाड़ी में भी जुते हुए थे
एक गाय और एक बैल ही तो था

एक परिश्रम एक शक्ति की मूरत
अगम की ओर अथक बढ़ते जाते
साठ पार थकान ने घेर ही लिया
शायद विधि का यह दस्तूर ही था

वो छोटे गांव की बस स्टैंड की बेंच
हलचल जाने पहचाने चेहरे फिरते
दिल की गहराईओं में कुछ चुभता
चेहरा गमगीन है नजर में राह नही

करते करते भी जिम्मेदारी छूट रही
बच्चों की पढ़ाई का बोझ बचा था
बाहु में जोर नही स्त्रोत सूख रहे थे
अतीत में झांक जाते चूक कहां थी

एक के बाद एक बाधाएं पार करते
आज ये चौराहे पर बेबसी बची थी
जीवन भर सफलता का उत्सव था
आज हार के बोझ तले सुस्ताते थे

मगर बीज का गलना नवसर्जन है
आगे जीवन की दूसरी पारी खड़ी 
कुछ बरसो की बेबसी तो खत्म हुई 
बच्चे कमाते फिर आवक होने लगी

फिर उनकी बगियाँ लहलहाने लगी
नई कोंपले नए पुष्प अवतरित हुए
उस अंधियारे से सवित उदित हुआ
मायूसी से निकल चेहरा चमक उठा

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