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फ़ोन के रिश्ते

suresh kumar guptasuresh kumar gupta March 7, 2023
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वक्त ने करवट ली शब्दावली बदल गयी
चेट से ब्रेकअप से पेचप तक आ गए है

अजीब नशा वर्चुअल फ्रेंड्स मिल रहे हैं
फ़ोन के रिश्ते वर्चुअल व‌र्ल्ड में जी रहे है

खून के रिश्ते लहूलुहान फ़ोन के छा गए
खून के रिश्ते छोड़ फ़ोन के रिश्ते बनाए

फेसबुक व्हारसप्प ट्वीटर इंस्टाग्राम कहे
करीबी रिश्ते शहीद है फ़ोन के रिश्ते हुए

भावना समझते मिलते-जुलते संवाद था  
समस्याओं का सामूहिक निराकरण था

संवेदना जीवन मूल्य थी संवेदनहीन हुए 
साथ बैठकर करीब थे अब वर्चुअल हुए 

संवाद नहीं व्यक्तिगत समस्या जाल बुने
रिश्ते बनते कम हैं और ज्यादा टूट रहे हैं

बातें काफी होती दिलों की दूरियां बढी हैं
रिश्तों की बुनियाद कमजोर होने लगी है

संदेह की बुनियाद में रिश्तों कर दायरे बढे
कल्पना के संसार में विचरण करने लगे है

नकारात्मकता रिश्ते टूटने की वजह बनी 
परिवार में बैठना भूले बातें कम कर रहे है

बच्चे व्यस्त हुए जीवन मे लक्ष्य किधर है
जीवन की जरूरी शिक्षा से दूर हो रहे हैं 

रिश्तों की कीमत जानी नही व्यर्थ यूज़ है
फ़ोन सड़क हादसों की वजह बन रहे हैं

मोबाइल का यूज जीवन में महत्वपूर्ण है
अनियंत्रित उपयोग से रिश्ते प्रभावित है

साथी के साथ नही फोन के आदी हुए है
फोन पर लगातार अपडेट ही देख रहे है

जीवन को दिलचस्प और सार्थक बनाते
क्वालिटी टाइम साथ में बिताना सीखते

वक्त है हाथ से फिसलती खुशी थाम ले
लिमिट में फ़ोन चलाते कम यूज करते

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