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धर्म प्रेम की भाषा

suresh kumar guptasuresh kumar gupta March 12, 2023
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हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई 
किसी मे फर्क न कर पाया
उठता बैठता सब के साथ
जैसा मुझे धर्म ने सिखाया

दिल से दिल मे जगह बना 
जो मिला आत्मसात किया
मन से हिन्दू मैं तन से हिन्दू 
हिंदुत्व मेरे रोम रोम में बसा

मंदिर जाता मैं देरासर गया
गुरुद्वारा मजार में हो आया
सबमे दिल से बंदगी करता 
सबमे अपना देव ढूंढ पाया

कोई आया इबादत में मेरे
ईश्वर का फर्क सिखा गया
आज मैं पूछता धर्म पहले
मैं धर्म संकीर्ण बनाता गया

धर्म प्रेम की भाषा समझता 
आपस मे घृणा बढ़ाता गया
शांत समुद्र में हिलोरे उठती
क्यों मैं सुनामी उठाता गया

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