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अणु जगत में जगत अणु में विद्यमान
व्यष्टि समष्टि जगत का एक है निर्धार
चिंगारी फैली चमक ब्रह्मांड में छा गई
एक सुमधुर रूप नारी वहां प्रकट हुई
विनीतभाव सभी देव हाथ बांधे खड़े
देवी आप कौन करते वंदना पूछ रहे
मैं प्रकृति पुरुषात्मक जगत मैं ब्रह्म हूं
मैं सत असत में मैं यहां जगजननी हूं
आनंद अनानंद मैं विज्ञान अविज्ञान हूं
ब्रह्म अब्रह्म मैं महाभूत दृश्य जगत हूं
वेद अवेद मैं विद्या अविद्या भी मैं हूं
मैं प्रकृति प्रकृति से परे मैं सर्वत्र हूं
रुद्र वसु आदित्य विश्वदेवो को चलाती
विष्णु, ब्रह्मा शिव को धारण करती हूं
मित्र वरुण इन्द्र अग्नि अश्विन पोषण
सोम त्वष्टा पूषा भग धारण करती हूं
यजमान को हविर्द्रव्य युक्त धन देती हूं
जगत् ईश्वरी उपासकों को धन देती हूं
आत्मरूप पर आकाशादि निर्माण करूं
ब्रह्मरूप मैं यजन वाले देवो में मुख्य हूँ
आत्मा धारण करे उस बुद्धिवृति में बसी
मैं सबको कर्तव्य कर्म में प्रवृत करती हूं
गुणासाम्यावस्थारूपिणी मंगलमयी है
देवी की मैं नियमयुक्त अर्चना करता हूं
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