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साम्राज्य से वंचित थे हाथ एक चिराग आया
अना आंदोलन की आंच से खिचडी पकाया
जोरशोर से तैयारी की सब तरह के मुद्दे उठाए
लोकतंत्र न लाए गांठ का दांव पर लगा आये
प्रयास कामयाब हुए आरोपो की झड़ी लगाई
कोंग्रेस को पछाड़ कर तख्त अपने नाम किया
कंधो पर थी बंदूक वे अंधेरो के गर्त में समाए
सदियो से होता रहा जीत कोई और पचा गए
चाणक्य ने इतिहास रचा सबको मात दे आया
लोकतंत्र की जड़ में मट्ठा डाल जडे हिला गया
जितने आरोप लगाए साबित एक न कर पाए
डबल इंजन गाड़ी दौड़ी रेवडी अपनो में बांटी
मगर खुशियाँ भी कहाँ देर तक टिकी रहती है
आंदोलन की राख से भस्मासुर भी पैदा हुआ
आकाओ के कितने सपने धराशायी कर गया
देखते ही छोटा रिचार्ज दिल्ली तख्तनशीं हुआ
आज भी भागते बेतहाशा उसे रोक नही पाते
वह है हर किसी को भस्म करने की फ़िराक़ में
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